संघवाद और लोकतांत्रिक राजनीति class 10th chapter 2 notes pdf


राजनीतिक शास्त्र वह शिक्षा है जो राजनीति के विभिन्न पहलुओं को अध्ययन करती है। इसमें राजनीतिक प्रणाली, सरकारी नीतियाँ, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक प्रक्रियाएं, शासन, लोकतंत्र, नैतिकता, विचारधारा, राजनीतिक इतिहास, आदि शामिल होते हैं। यह शिक्षा छात्रों को समाज में अधिकार और कर्तव्यों के बारे में जागरूक करती है और उन्हें समाज में सक्रिय भूमिका निभाने की तैयारी करती है।

class 10th political science chapter 2 sanghvad aur loktantrik rajnitik notes in hindi 


                 Political science chapter 2 
                संघवाद और लोकतांत्रिक राजनीति 


1. संघवाद क्या है और इसकी मुख्य विशेषताएं क्या हैं?
 - संघवाद एक विचारशैली है जो एक अधिकारिक ताकत के संगठन को प्रमुख मानती है। यह विचारशैली समाज में समाजिक समरसता और समानता की बजाय विभाजन और असमानता को प्रोत्साहित करती है।

2. लोकतांत्रिक राजनीति क्या है और इसके महत्वपूर्ण लक्षण क्या हैं?
- लोकतांत्रिक राजनीति एक राजनीतिक प्रणाली है जो लोगों के अधिकार और उनकी सहभागिता पर आधारित है। इसमें सर्वत्र स्वतंत्रता, न्याय, समानता, और लोगों की सहभागिता का अधिकार होता है।

3. संघवाद और लोकतांत्रिक राजनीति के बीच क्या अंतर है?
- संघवाद में एक ही नेता या संगठन की अधिकारिता होती है, जबकि लोकतांत्रिक राजनीति में लोगों की सहभागिता और अधिकार होते हैं।

4. भारतीय संविधान किसे लोकतांत्रिक राजनीति का प्रतीक मानता है?
- भारतीय संविधान लोकतांत्रिक राजनीति का प्रतीक माना जाता है क्योंकि इसमें लोगों के अधिकार और स्वतंत्रता को महत्व दिया गया है, और लोगों को न्यायपालिका, विधायिका, और कार्यपालिका में सहभागिता का माध्यम प्रदान किया गया है।

5. भारतीय संघीय व्यवस्था पर प्रकाश डालें?
:- भारतीय संघीय व्यवस्था एक ऐसी राजनीतिक प्रणाली है जो भारत में प्रचलित है। इस व्यवस्था में शासन का शक्ति देने का तंत्र है, जो कि केंद्र और राज्यों के बीच साझा किया गया है। भारतीय संघीय व्यवस्था में दो स्तर होते हैं: केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारें। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं की चर्चा की जा सकती है:

1. केंद्रीय सरकार (या केंद्र):-
भारतीय संघीय व्यवस्था में केंद्रीय सरकार भारत सरकार को कहा जाता है। इसमें केंद्र के पास विशेष क्षेत्रों में सत्ता होती है, जैसे कि रक्षा, विदेश, और संचार।

2. राज्य सरकारें:- 
भारतीय संघीय व्यवस्था में राज्य सरकारें अलग-अलग राज्यों के लिए स्थापित होती हैं। ये सरकारें राज्य के अंतर्गत कई क्षेत्रों में सत्ता बांटती हैं, जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य, और कृषि।

3. संघ और राज्यों के संबंध:-
 संघ और राज्यों के बीच संविधान में स्पष्ट तौर पर विभाजित किए गए कार्यों के आधार पर काम करते हैं। कुछ कार्य संघ के अधीन होते हैं, कुछ राज्यों के अधीन होते हैं, और कुछ उन्हें संयुक्त रूप से किया जाता है।

4. संघीय संरचना का पुनरावलोकन:-
 संविधान ने संघीय संरचना को मजबूत और दुर्बल करने के लिए कई बार संशोधन किया है, जिससे कि नागरिकों को बेहतर सेवाएं प्राप्त हो सकें।

इस व्यवस्था के अंतर्गत, भारत में केंद्र और राज्यों के बीच संघीय शक्ति का वितरण होता है, जो देश के विकास और प्रगति में मदद करता है।

6. भारतीय संघ कि विशेषताओं का वर्णन करें:-
भारतीय संघ की विशेषता कुछ मुख्य बिंदुओं पर आधारित होती है:

1. एकीकृत राष्ट्र:-
भारतीय संघ एकीकृत राष्ट्र की संरचना को प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें केंद्र और राज्यों के बीच संघीय तंत्र होता है। यह तंत्र राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने में मदद करता है।

2. संविधानीय व्यवस्था:-
भारतीय संघ संविधानीय व्यवस्था के अंतर्गत काम करता है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों और सिद्धांतों पर आधारित है। संविधान में संघ के और राज्यों के बीच शक्ति वितरण की विस्तृत व्याख्या की गई है।

3. भिन्नता और एकता का संगम:-
भारतीय संघ एक विविध और बहुभाषी देश में एकता और भिन्नता का संगम प्रतिनिधित्व करता है। इसमें भारत की सांस्कृतिक, भाषाई, धार्मिक और सामाजिक विविधता को समाहित किया जाता है।

4. संघीय संरचना का विस्तार:-
भारतीय संघ का संरचना विस्तारशील है और इसमें केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति का सार्वजनिक वितरण होता है। इससे नागरिकों को स्थानीय सरकारों के माध्यम से सेवाएं प्राप्त होती हैं।

5. एकीकृत नेतृत्व:-
भारतीय संघ में एकीकृत नेतृत्व का प्रणाली है, जिसमें केंद्रीय सरकार एक ही नेता के नेतृत्व में काम करती है। यह नेतृत्व नागरिकों को एक साझा धार्मिकता और विश्वास के साथ एकजुट करता है।

इन सभी कारकों के संयोजन से, भारतीय संघ अपनी विशेषता में विशेष रूप से प्रभावशाली है और देश के विकास और समृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

7. संघीय व्यवस्था कैसे चलती है?
भारतीय संघीय व्यवस्था के चलने का प्रक्रियात्मक ढंग निम्नलिखित होता है:

1. संविधान के प्रावधानों का पालन:- 
संघीय व्यवस्था के चलने का पहला और मुख्य आधार संविधान होता है। संविधान में दिए गए नियमों, प्रावधानों, और सिद्धांतों का पालन किया जाता है।

2. संसदीय प्रक्रिया:- 
संघीय व्यवस्था में संसद एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। केंद्रीय और राज्य संसदों में विधायिका सदस्यों द्वारा निर्णय लिया जाता है, जिससे कि नये कानून बनाए जा सकते हैं और नीतियों पर चर्चा की जा सकती है।

3. केंद्र और राज्य सरकार का काम:- 
केंद्रीय और राज्य सरकारें अपने क्षेत्र में काम करती हैं और नीतियों को कार्यान्वित करने का जिम्मेदार होती हैं।

4. संविधान के प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई:-
संविधान ने केंद्र और राज्यों के बीच संघीय शक्ति का वितरण के बारे में स्पष्ट दिशा निर्देश प्रदान किया है। इसके अनुसार, संघ और राज्य सरकारें अपने क्षेत्रों में काम करती हैं।

5. न्यायपालिका का काम:- 
न्यायपालिका संघीय व्यवस्था में न्याय की सुनिश्चिति करती है और संविधान के प्रावधानों का पालन करती है।

इन सभी प्रक्रियाओं के संयोजन से, भारतीय संघीय व्यवस्था काम करती है और नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता, और समरसता के साथ संविधानीय रूप से तैयार देती है।

8. भारत में विकेंद्रीकरण पर प्रकाश डालें?
भारत में विकेंद्रीकरण एक प्रकार की राजनीतिक प्रक्रिया है जिसमें केंद्र और राज्यों के बीच कार्यों और शक्तियों का पुनर्वितरण होता है। इसका मुख्य उद्देश्य राज्यों को अधिक स्वायत्तता और निर्णय लेने की स्वतंत्रता प्रदान करना होता है। विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया के द्वारा, केंद्र और राज्य सरकारें केवल उन क्षेत्रों में ही हस्तक्षेप करती हैं जिन्हें संविधान द्वारा सौंपा गया है।

9. भारत में विकेंद्रीकरण के कारणों का वर्णन करें?
भारत में विकेंद्रीकरण का प्रमुख कारण बढ़ती जनसंख्या, 
विकास के लिए उपलब्ध संसाधनों की कमी, और विभिन्न राज्यों की असमान विकास स्तर है। इसका परिणाम है कि केंद्र सरकार को अधिक शक्ति और अधिकार मिलते हैं, जबकि राज्य सरकारों को कम। इससे राज्यों की स्वायत्तता और स्थानीय संगठनों की सामर्थ्य में कमी होती है।

विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया के तहत, केंद्र सरकार अनेक क्षेत्रों में प्राधिकरण और नियंत्रण को बढ़ा सकती है, जैसे कि रक्षा, विदेश मामले, और संचार। इसके अलावा, नीतियों और योजनाओं का विकास और कार्यान्वयन केंद्र सरकार के हाथ में होता है।

कुछ लोग इसे संविधान के धारा 370 के समापन, गुजरात और तामिलनाडु में उपयोग किए गए धारा 356 (राज्य आपातकालीन शासन) और धारा 365 (राज्य सरकार की विफलता के कारण संघ के प्रबल अधिकार) के माध्यम से उदाहरण मानते हैं।

विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया विवादित है और इसके संदर्भ में विभिन्न धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक समूहों के बीच विवाद होते रहते हैं।

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